
भारत में हजारों मरीजों को जल्द ही रिवीजन जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है। ये सर्जरी पहली से अधिक जटिल, महंगी और जोखिम भरी होती है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पुराने इम्प्लांट्स अब अपनी “लाइफ साइकल” के अंत में पहुँच रहे हैं, जिससे मरीजों को ढीलापन, घिसाव और चलने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
सर्जनों की चेतावनी
तीन-दिवसीय रिवीजन आर्थ्रोप्लास्टी कॉन्फ्रेंस (RAC) 2025 में शामिल 850 से अधिक सर्जनों ने कहा कि भारत में रिवीजन सर्जरी की जरूरत बहुत बढ़ रही है, लेकिन पर्याप्त प्रशिक्षित सर्जन उपलब्ध नहीं हैं।
डॉ. अनिल अरोड़ा, मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रोबोटिक नी और हिप रिप्लेसमेंट हेड, ने कहा:
“हर हिप या नी रिप्लेसमेंट अंततः खराब हो जाता है। अब हम एक ऐसे दौर में हैं, जहां पहले लगाए गए हजारों इम्प्लांट फेल होने लगे हैं। हमें तुरंत अधिक प्रशिक्षित रिवीजन सर्जनों की जरूरत है।”
इम्प्लांट की उम्र और रिवीजन की जरूरत
- प्रोफेसर विजय कुमार, AIIMS: ज्यादातर इम्प्लांट की उम्र 15-20 साल होती है।
- 2000 के दशक की शुरुआत में बड़े पैमाने पर सर्जरी हुई, अब ये इम्प्लांट अपनी आखिरी अवस्था में हैं।
- पुराने इम्प्लांट अक्सर ढीले या घिस चुके हो जाते हैं, जिससे दर्द, अस्थिरता और चलने में कठिनाई होती है।
रिवीजन आर्थ्रोप्लास्टी क्यों जरूरी
रिवीजन सर्जरी में सर्जन को पुराना इम्प्लांट हटाना होता है, हड्डी और जोड़ की सुरक्षा करनी होती है और विशेष कंपोनेंट्स का इस्तेमाल कर नया जॉइंट बनाना होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उच्च विशेषज्ञता, सावधानीपूर्ण योजना और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है।
संकेत: लगातार दर्द, चलने में कठिनाई या जॉइंट का ढीला महसूस होना।
महत्वपूर्ण: मरीजों को 10-12 साल बाद रेगुलर चेकअप कराना चाहिए, नहीं तो सर्जरी कठिन हो सकती है।