नई दिल्ली। कांग्रेस ने अडाणी समूह के विभिन्न क्षेत्रों में एकाधिकार स्थापित करने का दावा किया और सवाल किया कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) जैसी संस्थाएं इस मामले में आखिर निष्क्रिय क्यों बनी हुई हैं?
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सीसीआई को अदाणी समूह के मामले में कदम उठाने का साहस करना चाहिए। अमेरिकी संस्था ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ की रिपोर्ट आने के बाद से कांग्रेस अडाणी समूह पर अनियमितता और एकाधिकार के आरोप लगातार लगा रही है, हालांकि इस कारोबारी समूह ने सभी आरोपों को खारिज किया है।
रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर अपनी पोस्ट में कहा कि खबर है कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने चिंता जताई है कि प्रस्तावित रिलायंस-डिज्नी विलय, प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है। यह इस बात पर विचार करने का एक अच्छा समय है कि सीसीआई को इस मामले में भी कदम उठाने का साहस कैसे करना चाहिए था कि नॉन बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री का पसंदीदा व्यावसायिक समूह कैसे कंपनियों का अधिग्रहण कर रहा है और विभिन्न उद्योगों में प्रतिस्पर्धा को कम कर रहा है।
The Competition Commission of India (CCI) has reportedly raised concerns that the proposed Reliance-Disney merger could stifle competition. It is a good time to reflect on how the CCI should have also had the courage to address how the non-biological PM’s other favourite business…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 21, 2024
https://platform.twitter.com/widgets.jsउन्होंने कहा कि सीसीआई के लिए एक निश्चित सीमा से अधिक के विलय और अधिग्रहण को मंजूरी देना कानूनी तौर पर अनिवार्य है। फिर भी, अडाणी समूह द्वारा किए गए सभी अधिग्रहणों को मंजूरी दे दी गई है, भले ही कंपनी ने बंदरगाहों, हवाई अड्डों, बिजली और सीमेंट जैसे क्षेत्रों में एकाधिकार बना लिया है।
रमेश ने कहा कि हाल के वर्षों में, सीसीआई ने प्रभुत्व के कथित दुरुपयोग के लिए घरेलू और वैश्विक दोनों कंपनियों पर जुर्माना लगाने में संकोच नहीं किया है। फिर भी, केंद्र सरकार ने लखनऊ और मंगलुरू हवाई अड्डों पर यात्रियों द्वारा भुगतान किए जाने वाले उपयोगकर्ता विकास शुल्क (UDF) में 5 गुना वृद्धि की अनुमति दी है। नीति आयोग और वित्त मंत्रालय की आपत्तियों के बावजूद, अडाणी समूह के पक्ष में नियमों में बदलाव के बाद उसे दिए गए छह हवाई अड्डों में ये हवाई अड्डे भी शामिल थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि अडाणी समूह की नीतियों और कार्यों के कारण हरियाणा, झारखंड और गुजरात जैसे राज्यों में बिजली की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं।
रमेश ने सवाल किया कि जब लेन-देन में ‘नॉन-बायोलॉजिक प्रधानमंत्री के सबसे करीबी दोस्त शामिल होते हैं तो सेबी सहित भारत के नियामक संस्थान गायब क्यों हो जाते हैं? आम तौर पर सक्रिय रहने वाले ये संस्थान निष्क्रिय क्यों बने हुए हैं क्योंकि इस मित्र ने उपभोक्ताओं की कीमत पर कीमतें बढ़ाकर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में एकाधिकार स्थापित कर लिया है?’
Edited by : Nrapendra Gupta