देशभक्ति पर बेहतरीन हिन्दी कविता : करुणा दया प्रेम का भारत


Poem on 15th August
 

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भारत मां का शीश हिमालय‌ 

चरण हैं हिन्द महासागर, 

मातुश्री के हृदय देश में 

बहती गंगा हर-हर-हर। 

  

अगल-बगल माता के दोनों 

लहराते हैं रत्नाकर, 

पूरब में बंगाल की खाड़ी 

पश्चिम रहे अरब सागर। 

  

मध्यप्रदेश में ऊंचे-ऊंचे 

विंध्य, सतपुड़ा खड़े हुए, 

सोन, बेतवा, चंबल के हैं 

यहीं कहीं चरणों के घर। 

  

छल-छल छलके यहां नर्मदा 

यमुना-केन चहकती हैं, 

दक्षिण में गोदावरी, कृष्णा 

पार उतारें भवसागर। 

  

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई 

रहते हैं सब मिल-जुलकर, 

यहां चाहते देवता रहना 

स्वर्ग लोक से आ-आकर। 

  

कहीं भेद न भाव धर्म का 

न ही जाति का बंधन, 

करुणा, दया, प्रेम का भारत‌ 

मन सबके निर्मल, निर्झर।

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