सोशल मीडिया का बढता प्रकोप घातक -डाॅ.वीरेन्द्र भाटी मंगल

सोशल मीडिया का बढता प्रकोप घातक -डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल

ज्ञानप्रवाह न्यूज – वर्तमान में सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग बढता ही जा रहा है यह मानव स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। एक सर्वे के अनुसार सोशल मीडिया बच्चों से लेकर बडी उम्र तक के लोगों पर हावी हो चुका है, इसके बिना अनेक लोगों के दिन की शुरुआत ही नहीं हो पाती है। सोशल मीडिया के अधिक उपयोग सेे न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है बल्कि मानसिक दबाव भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जिसके चलते अचानक व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक परेशानियों से जुझना पड़ रहा है। इन हालातों को देखते हुए सोशल मीडिया के उपयोग को कम करना बहुत जरूरी है, निर्धारित समय अन्तराल जरूरी है,अन्यथा सोशल मीडिया के अति-उपयोग के दुष्परिणाम डरावने होनेवाले है।

अभिभावको को चाहिए वे स्वयं पर संयम रखते हुए विशेषकर बच्चों पर भी पूरी नजर रखें। बच्चों को समय-समय परं सोशल मीडिया से होने वाले दुष्परिणामों से भी अवगत करवाते रहना चाहिए। इसके साथ अनेक एप भी आ चुके है, जिनका उपयोग करते हुए बच्चे कितनी देर ऑनलाइन रहते है,इस पर भी निगरानी रखी जा सकती है।
आज हमारे घर-परिवारों में सोशल मीडिया का यह प्रकोप बहुतायत में बढ रहा है। हर व्यक्ति युवा-पीढी में बढती इस लत व इससे होने वाली अनियमित जीवन शैली को लेकर चिंतित है,लेकिन यहां विचारणीय प्रश्न यह भी है कि आखिर हम कितने सोशल मीडिया के दुष्परिणामों को लेकर सजग है? सोशल मीडिया का यह घातक नशा चारों तरफ फैल रहा है, बच्चे, युवा,महिला,पुरुष,बुजुर्ग आदि कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा है। देर रात्रि तक यहां तक कि रात-रात भर अपने-अपने कमरों में दुबके परिवार के हर छोटे-बड़े सदस्य सोशल मीडिया की गिरफ्त में आकर अपना समय व्यतीत करने के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी चौपट कर रहे है। क्या इस मामले में केवल युवा ही दोषी है ? इस बढती घातक प्रवृत्ति को रोकने के लिए युवाओं को तो कोसा जा रहा है, लेकिन मां-बाप व घर के बडे़ भी अपने गिरेबान में भी झांकने का प्रयास करें तो काफी हद तक इस समस्या पर समाधान पाया सकता है। चिंता का विषय है यह नहीं है कि युवाओं में यह लत खतरनाक तरीके से पनप रही है, बल्कि चिंता इस बात कि भी है कि घर के सभी सदस्य सोशल मीडिया पर इतना समय व्यतित करते है कि आपस में संवादहीनता की स्थिति बन गई है।

हर घर में सोशल मीडिया के माध्यम से पनपी इस अनियमित जीवन शैली से तरह-तरह के रोग व समस्याएं सामने आ रही है। ज्वलंत प्रश्न यह भी है कि आखिर इस पर रोक लगेगी कैसे ? कौन युवा पीढी का मार्गदर्शन करेगा। आज वे अभिभावक हक अपना खो चुके है, जो स्वयं दिन-रात सोशल मीडिया में डूबे रहते है, और युवाओं की चिंता करते हैं। बढती यह लत परिवारों में बेहद खतरनाक साबित हो रही है। इससे जहां एक ओर परिवारों का बिखराब हो रहा है, वहीं दूसरी ओर रिश्तो की परम्परा खत्म हो रही है।

वर्तमान में यह घर-घर कहानी बन गई है। युवा हो या प्रौढ सभी उठते ही सबसे पहले मोबाइल को ही उठाते है, वहीं देर रात्रि को सोते समय तक सोशल मीडिया पर क्या कुछ ट्रेंड कर रहा है, किसने क्या फोटो लगाया है? और किसने क्या कमेंट किया? यह देखने में ही वह कई घण्टे बर्बाद कर देता है। इस मानसिक स्थिति में पास में ही बैठे परिवार के सदस्य या मां-बाप के सुख-दुख का पता ही नहीं चलता। अब व्यक्ति सोशल मीडिया के उपयोग से स्वयं में अकेलेपन को भी महसूस करने लगा है,इसके बाद भी सुधार की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। इन सबके साथ सोशल मीडिया की लत हावी होती इस लत से लोग अपने व्यक्तिगत जीवन को सार्वजनिक करने से संकोच नहीं करते। इससे अलावा सोशल मीडिया पर अधिक कमेंट पाने की लालसा में अश्लीलता का नंगा नाच भी सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म पर देखने को मिलता है, जो बेहद चिंताजनक है। संस्कारहीन हो चुकी इस पीढी के कारनामे देखकर मां-बाप चिंतित है। सोशल मीडिया पर अपलोड की गई फोटो व वीडियो पर संतोषजनक कमेंट आदि नहीं आने से भी लोगों विशेषकर युवाओं में मानसिक रोग में इजाफा हो रहा है।

सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड तेजी से बढता जा रहा है कि एक व्यक्ति दिन भर में होने वाली सभी गतिविधियों को सोशल मीडिया के माध्यम अपलोड कर लेता है, जो कदापि उचित नहीं है। सोशल मीडिया से दूरी बनाने का सबसे अच्छा तरीका है स्वयं में अनुशासन पैदा करना होगा। एक नियम बनाना होगा कि सोशल मीडिया का उपयोग कब व कितना करना है। विशेषकर जब व्यक्ति परिवार के साथ हो, तब मोबाइल फोन से उचित दूरी ही बनाकर रखे तो लुप्त होते रिश्तों के साथ भावनात्मक जीवन जीया जा सकता है।

-डाॅ.वीरेन्द्र भाटी मंगल – वरिष्ठ साहित्यकार व स्तम्भकार, लाडनूं राजस्थान मोबाइल – 9413179329

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