राजनेताओं में बढती अनैतिकता लोकतंत्र के लिए खतरनाक

राजनेताओं में बढती अनैतिकता लोकतंत्र के लिए खतरनाक
-डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल – वरिष्ठ साहित्यकार व स्तम्भकार

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लाडनूं राजस्थान/ज्ञानप्रवाह न्यूज – देश में लोकसभा के चुनाव हो रहे है। हजारों प्रत्यासी चुनाव मैदान में है। चुनाव लड¬़ना कोई बुरी बात नहीं है, लेेकिन चुनाव में लोकतांत्रिक व्यवस्था के विपरीत आचरण करना राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा है। चुनाव भले ही महाविद्यालय के हो, पंचायत स्तर के हो, विधानसभा या लोकसभा के क्यों न हो लेकिन जब नैतिकता एवं मर्यादा को ताक में रखकर चुनाव लड़े जाते है तो चुनाव दंगल का रूप ले लेता है, वहां एक दूसरे के प्रति सम्मान, सदभाव एवं देश विकास की बात गौण हो जाती है। जबकि चुनाव में नैतिक आचरण बहुत जरूरी है। मूल्यों की रक्षा एवं विकास के लिए ऐसे उम्मीदवारों को संकल्प ग्रहण करना होगा जो देष के विकास में सहभागी बनना चाहते है। तभी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में देष की जनता के साथ समुचित न्याय किया जा सकता है।

देश में जब-जब भी चुनावी माहौल आता होता है, तब-तब राजनेताओं का बड़बोलापन व भाषा की मर्यादा सीमा लांघ जाती है। इस माहौल मंे देश में जाति, धर्म, लिंग भेद के नाम पर तरह-तरह के जुमले चलते है। चुनावों में अनैतिकता बढ जाती है। चुनाव में बढते अनैतिक आचरण से हमारे लोकतंत्र की मर्यादा तार-तार हो रही है। चुनाव लड़ने वाले नेताओं से जनता यह अपेक्षा करती है कि अपनी भाषायी मर्यादा के साथ-साथ चुनाव में किसी भी प्रकार का ऐसा आचरण नही करें, जिससे आम जनता पर विपरित असर पड़े। देश के राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे देश में उन लोगों को टिकिट दें, तो नैतिक व ईमानदार छवि के व्यक्ति हो।

चुनाव शुद्धि देश की जनता के सामने बहुत बड़ा विकल्प है। अगर जनता चुनाव शुद्धि को सफल बनाती है तो देष को एक स्वस्थ सरकार मिलने में सक्षम होगी, जिसके परिणाम स्वरूप देश का बहुमुखी विकास होगा वहीं स्थिर एवं प्रभावी विकास होगा। चुनाव शुद्धि के लिए उम्मीदवार यह संकल्प ग्रहण करे कि हम चुनाव में विजयी हो या न हो किसी भी हालत में भ्रष्ट व अनैतिक तरीकों को इस्तेमाल चुनाव में नहीं करेगें। इसी प्रकार सता पर आसीन दल की बहुत बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि चुनाव मंे सरकारी सम्पत्ति एवं साधनों का उपयोग किसी भी प्रकार नही होना चाहिए। सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है हमारी जनता जर्नादन की, जो जागृत होकर लोभ, भय आदि में आकर लोकतंत्र को दूषित न करें। तभी स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था को अमली जामा पहनाया जा सकता है।

जब चुनाव में अनैतिक आचरण नहीं होगा तब योग्य उम्मीदवार का सामने आना तय है। वर्तमान हालातों में चुनावों की दषा देखकर योग्य उम्मीदवार स्वयं ही किनार कर लेता है, जो देष में सही लोकतांत्रिक व्यवस्था व विकास के लिए अच्छी बात नहीं है। देष की जनता को सजग व जागरूक होना होगा, योग्य उम्मीदवार का चयन करना होगा। तभी इस चुनाव की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है। जब यह व्यवस्था लोकतंत्र में प्रभावी होगी तभी उम्मीदवार यह संकल्प ग्रहण कर पायेगा कि मैं चुनावों में अनैतिक आचरण नहीं करूगां।
अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी ने चुनाव शुद्धि को लेकर जो देष को चिंतन दिया आज भी उनके चिंतन पर बहुत बड़ा काम हो रहा है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से जहां चुनाव-शुद्धि अभियान को गतिशील किया वहीं योग्य व ईमानदार उम्मीदवार के चयन के लिए भी देश की जनता का मार्ग प्रशस्त किया। तात्कालिक मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने आचार्य तुलसी के सामने नतमस्तष्क होते हुए उनके द्वारा दिये गये सुझावों को स्वस्थ चुनाव प्रक्रिया के लिए उपयोगी बताये। देश के विकास एवं संतुलन के लिए लोकतंत्र मानवीय एकता का सूत्रधार बने, यह तभी संभव होगा। जब देश की चुनाव प्रक्रिया शुद्ध होगी।

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जनता का प्रशिक्षित होना बहुत जरूरी है, जब जनता जागरूक होगी तभी मायने मायने में लोकतंत्र की जीत होगी। लोकतंत्र की नीव अभय पर टिकी है जब जब जनता में भय का भाव पैदा होगा, देश को लोकतंत्र खतरे मंे होगा। इसके लिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति का नैतिकता में प्रबल विश्वास हो, उसके अनुरूप जीवन जीने का संकल्प एवं संकल्प की रक्षा के लिए किये जाने वाला आचरण प्रभावी बने। जहां जाति, सम्प्रदाय और अर्थबल से प्रभावित नहीं होगा, वहां नीतिनिष्ठ देश का ढांचा तैयार होगा। इन सबके साथ-साथ लोकतंत्र के इस उत्सव में आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को भी जीवित रखना होगा।

जब मानवीय चेतना पर अनैतिकता हावी हो जाती है तो लोकतंत्र का खतरे में पड़ना तय है। इसके लिए चुनाव आयोग का प्रयास प्रभावी है आज चुनाव की प्रक्रियाएं सहज व सरल बनती जा रही है जो आम मतदाताओं की विचारधारा एवं चिंतन को ध्यान में रखकर बनायी जा रही है। इससे हमारा चुनावी तंत्र मजबूत हुआ है। देश की जनता वोट के प्रति जागरूक बनी है। चुनाव का सारा दारोमदार जनता पर है, जनता ही लोकतंत्र का वह मजबूत स्तम्भ है जिसके सहारे मजबूत महल खड़ा किया जा सकता है।

आज आवश्यकता है चुनाव-शुद्धि अभियान की। जब तक चुनाव पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होगें तक तक देश के विकास की बात सोची ही नहीं जा सकती। आज भारतीय जनमानस पर अनैतिकता हावी दिखाई दे रही है। सभी लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हैं, ऐसे में भला देश के क्या हालात होेंगे, किसी से छिपा नहीं है। लोकतंत्र शुद्धि के लिए आवश्यक है-जन चेतना को जगाने का। जब तक बुद्धि-जीवी वर्ग, मीडिया आदि इस कार्य के लिए सक्रिय नहीं होंगे तब तक चुनाव शुद्धि की कामना नहीं की जा सकती। सही लोकतंत्र की यदि परिभाषा दी जाए तो इसका अर्थ होता है-प्रेम, मैत्री व समता का विकास। लेकिन आज इसके विपरीत स्वार्थ, धोखा व असहिष्णुता द्रोपदी के चीर की तरह वृद्धिगत हो रहे हैं। जो हमारे देशहित में नहीं हैं इस विषय पर हमें विचार करना होगा। तभी हम देश एवं समाज के विकास के लिए अपना योगदान दे सकते हैं।

देश भर में नैतिकता के आधार पर चुनाव शुद्धि अभियान चलाना चाहिए। राष्ट्रीय संत आचार्य तुलसी-महाप्रज्ञ ने कहा था कि हमारे बहुमूल्य वोट का अधिकारी वहीं व्यक्ति होना चाहिए, जो ईमानदार हो, चरित्रवान हो, कार्य में निपुण हो, जाति सम्प्रदाय से बंधा हुआ न हो तथा आर्थिक पवित्रता में संलग्न हो। वोट देने की प्रक्रिया जितनी सहज और शुद्ध होगी, लोकतंत्र उतना ही स्वस्थ होगा। जब मानवीय चेतना पर स्वार्थ हावी होता है और अनैतिकता के बीज अंकुरित हो जाते हैं तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता हैं। हमें इस खतरे को रोकना होगा। हमें स्वार्थ हो हावी होने से रोकना होगा। मैत्री, प्रेम व समता का विकास कर देष के हित को ध्यान में रखते हुए ही हमें मतदान करना होगा। तभी देश का कायाकल्प संभव है। जिस दिन देश में जनता जागृत होगी उसी दिन सही मायने में लोकतंत्र आयेगा। जनता को जागृत करने के लिए आवश्यक है व्यक्ति सुधार। व्यक्ति सुधार से ही समाज व राष्ट्र का सुधार संभव है।

-डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल – वरिष्ठ साहित्यकार व स्तम्भकार राष्ट्रीय संयोजक – अणुव्रत लेखक मंच
लाडनूं (राजस्थान) मोबाइल – 9413179329

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