[ad_1]
Guru Pradosh Vrat
Highlights
* आज गुरु प्रदोष व्रत।
* गुरु प्रदोष व्रत पूजन के मुहूर्त।
* गुरु प्रदोष का महत्व।
ALSO READ: Vasudev Diwadashi | वासुदेव द्वादशी आज, पढ़ें वामनावतार की रोचक कथा
Guru Pradosh Vrat : हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी का गुरु प्रदोष व्रत दिन बृहस्पतिवार, 18 जुलाई 2024 को रखा जा रहा है। पौराणिक शास्त्रों में गुरु प्रदोष व्रत शुभ मंगलकारी और शिव कृपा दिलाने वाला माना जाता है। प्रदोष के दिन सायंकाल में पूजन किया जाता है। इस व्रत के संबंध में मान्यता के अनुसार यह व्रत सौ गायों का दान करने के बराबर फल देता है। यह व्रत दुश्मनों/ शत्रुओं का नाश करने तथा सभी कष्ट और पापों को हरने वाला माना गया है।
महत्व- धार्मिक शास्त्रों के अनुसार सायंकाल के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यतानुसार गुरु प्रदोष व्रत बहुत शुभ, मंगलकारी तथा भोलेनाथ की अपार कृपा दिलाने वाला माना गया है। प्रदोष व्रत अतिश्रेष्ठ, शत्रु विनाशक तथा भक्ति प्रिय व्रत माना जाता है, जो कि शत्रुओं का विनाश तथा सभी तरह के कष्ट और पापों का नाश करने वाला माना जाता है। मान्यता के अनुसार गुरु प्रदोष व्रत करने वाले को सौ गायें दान करने का पुण्यफल प्राप्त होता है। गुरु प्रदोष व्रत पूजन से शिव जी तथा देवगुरु की कृपा प्राप्त होती है।
गुरु प्रदोष व्रत 2024 : गुरुवार, 18 जुलाई के मुहूर्त
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ- 18 जुलाई 2024 को 08:44 पी एम से
त्रयोदशी तिथि समापन- 19 जुलाई 2024 को 07:41 पी एम बजे तक।
दिन का प्रदोष समय – 07:20 पी एम से 09:23 पी एम
प्रदोष पूजा मुहूर्त समय- 08:44 पी एम से 09:23 पी एम
कुल अवधि – 00 घंटे 39 मिनट्स
आज का शुभ समय :
– ब्रह्म मुहूर्त 04:13 ए एम से 04:54 ए एम
– प्रातः सन्ध्या 04:33 ए एम से 05:35 ए एम
– अभिजित मुहूर्त 12:00 पी एम से 12:55 पी एम
– विजय मुहूर्त 02:45 पी एम से 03:40 पी एम
– गोधूलि मुहूर्त 07:18 पी एम से 07:39 पी एम
– सायाह्न सन्ध्या 07:20 पी एम से 08:21 पी एम
– अमृत काल 06:33 पी एम से 08:09 पी एम
– निशिता मुहूर्त 19 जुलाई 12:07 ए एम से 12:48 ए एम।
– रवि योग 19 जुलाई 03:25 ए एम से 05:35 ए एम तक।
सरल पूजा विधि :
– त्रयोदशी तिथि के दिन सायं के समय प्रदोष काल में भगवान शिव जी का पूजन किया जाता है।
– इस दिन पूजन के लिए एक जल से भरा हुआ कलश, बेल पत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद और पीले पुष्प एवं माला, आंकड़े का फूल, सफेद और पीली मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री, 1 आरती के लिए थाली सभी सामग्री को एकत्रित करके देवगुरु बृहस्पति तथा शिव-पार्वती जी का पूजन किया जाता है।
– मंत्र- 'ॐ नम: शिवाय:' तथा 'ॐ बृं बृहस्पतये नम:' का जाप करना अधिक महत्व का माना गया है।
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
ALSO READ: श्राद्ध पक्ष कब से प्रारंभ हो रहे हैं और कब है सर्वपितृ अमावस्या?
[ad_2]
Source link