तिलकुंद/वरद चतुर्थी व्रत पर कैसे करें पूजन, जानें डेट, महत्व और पूजा विधि


Varad Chaturthi 2025: तिलकुंद चतुर्थी व्रत, जिसे वरद तिल चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया या चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है और इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं यहां तिलकुंद चतुर्थी या वरद चतुर्थी का महत्व, पूजा विधि और लाभ के बारे में…ALSO READ: कोंकण के तटीय क्षेत्र में माघ शुक्ल चतुर्थी को मनाते हैं गणेश जयंती, महाराष्ट्र में क्या कहते हैं इसे

 

तिलकुंद चतुर्थी व्रत का महत्व : धार्मिक शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी हर महीने आती है, लेकिन माघ महीने में आने वाली चतुर्थी को विशेष महत्व दिया गया है। वर्ष 2025 में यह व्रत 1 फरवरी, दिन शनिवार को पड़ रहा है। इसे महाराष्ट्र के कई स्थानों पर गणेश जयंती के नाम से भी मनाया जाता है।

यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है, जो विघ्नहर्ता हैं और सभी बाधाओं को दूर करते हैं तथा व्रत रखकर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण किया जाता है। यह व्रत महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है और उनकी रक्षा होती है। इस व्रत को करने से व्यापार में वृद्धि होती है और नौकरी में प्रमोशन मिलता है। साथ ही इस व्रत से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, धन, विद्या, बुद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 

 

वरद चतुर्थी के शुभ मुहूर्त और समय : इस वर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की विनायक/वरद तथा तिलकुंद चतुर्थी का प्रारंभ- 01 फरवरी को सुबह 11 बजकर 38 मिनट से शुरू होकर इसका समापन 02 फरवरी को सुबह 09 बजकर 14 मिनट से हो रहा है। इस हिसाब से उदयातिथि के अनुसार दोनों ही दिन यानि 01 और 02 फरवरी को उदय व्यापिनी चतुर्थी मनाई जा सकती है। 

 

तिलकुंद चतुर्थी व्रत की पूजा विधि :

1. तिलकुंद चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।

2. पूजा स्थल को साफ करें और वहां भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

3. भगवान गणेश को रोली, अक्षत, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें।

4. तिल और गुड़ से बने तिलकुंद का भोग लगाएं।

5. भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करते समय 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का उच्चारण करें।

6. कपूर और घी के दीपक से गणेश जी की आरती करें।

7. भगवान को भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांटें।

8. व्रतधारी दिन भर निराहार रहें और संध्या समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।

तिलकुंद चतुर्थी व्रत के दौरान क्या करें : इस दिन तिल का दान करना महत्वपूर्ण माना जाता है। तिल-गुड़ के लड्डू बनाकर भगवान को भोग लगाएं और तिल का दान करें। तिलकुटा और तिल का चूरमा भी इस दिन बनाया जाता है। व्रत रखने वाले लोग पूरा दिन कुछ नहीं खाते। शाम को चांद देखकर अर्घ्य देते हैं। गणेश जी की पूजा और चतुर्थी व्रत की कथा भी सुनी जाती है। इस बार 01 फरवरी को तिलकुंद चतुर्थी के शुभ अवसर पर भगवान श्री गणेश के साथ शनिदेव का पूजन भी किया जाएगा तथा इस दिन भगवान को तिल के लड्डू का भोग लगाकर तिल का दान करना चाहिए। 

 

तिलकुंद चतुर्थी व्रत के लाभ जानें : इस व्रत को करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है। जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि, धन, विद्या-बुद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

 

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