संस्कारहीन होती पीढी के लिए कौन जिम्मेदार ? – डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल

संस्कारहीन होती पीढी के लिए कौन जिम्मेदार ? – डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल

अनेक कठिनाइयों व समस्याओं के बावजूद भी संयुक्त परिवार व्यवस्था में पलकर एक बच्चा स्वयं ही संस्कार सीख जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। बिखरते संयुक्त परिवारों के बाद एकल परिवारों का दौर चल पडा, जहां अभिभावकों को लगता था कि हम बच्चों को अधिक सुख-सुविधायें व बढिया स्कूलों में पढाकर उन्हें संस्कारवान बना पायेगें ? लेकिन एकल परिवार में बच्चों को अच्छी शिक्षा तो मिल जाती है, लेकिन वे संस्कार उन्हें नही दे पा रहे हैं, जिसकी अपेक्षा है। वर्तमान दौर में संस्कारहीन होती पीढी प्रत्येक परिवार के लिए चिंता का विषय बन गया है। विचारणीय यह है कि आखिर इसके पीछे कारण क्या है? गहराई से चिंतन करे तो इसमें अभिभावकों का दोष ही अधिक नजर आता है। महंगे स्कूल, कपड़े, शिक्षण सामग्री के साथ हर सुख-सुविधा देने के बावजूद भी अभिभावक उन्हें बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद लेने जैसी भारतीय संस्कार परम्परा से भी दूर करते जा रहे है। हाय, हैल्लों की संस्कृति से पूर्व बच्चा हों या युवा सभी अपनों से बड़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते थे, लेकिन अब यह संस्कार परम्परा बहुत ही कम देखने को मिलती है।

अब समय यह आ गया है कि बच्चों के साथ-साथ बड़े भी पैर छूने की परम्परा को पुराना रिवाज समझकर छोड़ते जा रहे है, जो हमारी आने वाली पीढी के लिए संस्कारों की दृष्टि से बहुत ही घातक साबित हो रहा है।आज हर अभिभावक अपने बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं। बच्चा स्वस्थ और सुखी रहे इसके लिए वे सभी मांगें भी पूरी करते रहते है एवं बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए अच्छी शिक्षा भी दिलवाते हैं। यह एक दृष्टि से ठीक हो सकता है लेकिन जरूरत है कि बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों की शिक्षा भी देनी जरूरी है यह तब होगा जब उनकी गलती का अहसास कराते हुए उनकी गलतियों को नजरअंदाज नही किया जायेगा। बच्चों के जिद्दी और गुस्सैल रवैए के प्रति विशेष ध्यान देकर कारण खोजकर समाधान करना होगा। गलत बातों को अपना लेने से बच्चा संस्कारहीन बन जाता है और उसका भविष्य भी दावं पर लग जाता है। ऐसे में अभिभावकों को बचपन से ही संस्कार एवं अनुशासन के प्रति जागरूक करना चाहिए, जिससे बच्चा देश का एक संस्कारशील व श्रेष्ठ नागरिक भी बन सके।

संस्कारहीन होती पीढी की चिंता तो चारों तरफ हो रही है, लेकिन छोटे, अपने से बड़ों के साथ कैसा व्यवहार व संस्कार रखे। इस परम्परा का आभास करवाने वाले अब नाममात्र लोग ही बचे है। यह बच्चे केवल परिवार का ही आने वाला भविष्य नहीं हैं बल्कि भारत का भी भविष्य हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपने देश की सभ्यता और संस्कारों की नींव बच्चों में अवश्य डालें। आज हमारी परम्परा एवं संस्कृति को हमारे देश में ही महत्व कम देते जा रहे है, जबकि विदेशी भारतीय संस्कृति को अपना रहे है। अभिभावकोें को चाहिए कि बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए उन्हे संस्कारों से जुड़ी बातों को प्रशिक्षण बचपन से ही शुरू करना चाहिए।

हम वर्तमान में ऐसे युग में जीं रहे है जहां बच्चों को शिक्षा तो दी जा रही है लेकिन संस्कार नही दिया जा रहा है। जरूरत है कि हम बच्चों को शुरू से ही बच्चे संस्कार देना प्रारम्भ करे तो आने वाली पीढी संस्कारवान होगी, इसमें संदेह नहीं है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों जीवन में अच्छाई व बुराई से अवगत करवायंे, ताकि बच्चा जान सके कि उसके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। इसी प्रकार बच्चों को अपने से बड़े लोगों के साथ कैसे बातचीत करनी चाहिए व घर के बुजुर्गो का ख्याल कैसे रखना चाहिए, इसका सटीक प्रशिक्षण देना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को बचपन से ही धर्म अध्यात्म एवं धार्मिक संस्कारों से जोड़ने के लिए धर्म स्थानों आदि में ले जाना चाहिए। प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव के गुण सीखाने के साथ पशु-पक्षियों को सेवा करने का भाव भी पैदा करना चाहिए। बच्चों को अच्छी कहानियों के माध्यम से शिक्षा देने के साथ उदण्ड बच्चों से दूर रखने का प्रयास भी करना चाहिए। जीवन में नैतिकता का महत्व बचपन से ही बच्चों को बताने के साथ उसे सामाजिक बनाने के लिए दूसरें लोगों के साथ बातचीत करना एवं सहिष्णुता के गुणों को विकास भी करना चाहिए। बचपन से ही बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण करने एवं अच्छे कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने से बच्चों में संस्कार का विकास एवं निर्माण होगा।

-डाॅ.वीरेन्द्र भाटी मंगल ,वरिष्ठ साहित्यकार व स्तम्भकार, लाडनूं राजस्थान – मोबाइल-9413179329

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