दिखावे की दौड़ में खोता जा रहा है इंसान : अब खुद से जंग जीतनी होगी


 

✍ लेखक – विनायक अशोक लुनिया
📰 पत्रकार | 🌿 न्यूरोपैथी विशेषज्ञ | 🤲 हीलर
⚖️ विधि सलाहकार | 🎬 निर्माता-निर्देशक | 🎯 प्रेरणादायक काउंसलर


आज का इंसान जितना बाहर से चमकता नज़र आता है, भीतर से उतना ही खोखला होता जा रहा है। सफलता, ताकत और नाम के पीछे भागते-भागते वह अपने स्वयं से इतना दूर चला गया है कि उसकी अपनी पहचान तक धुंधली हो गई है।

खुद से दूर होता जा रहा है इंसान

हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ रिश्ते, अपनापन और भावनाएं सोशल मीडिया की ‘स्टोरीज़’ और ‘स्टेटस’ तक सीमित हो चुकी हैं। इस दौड़ में इंसान केवल दूसरों से नहीं, अपने आप से भी कटता जा रहा है। वह भूल चुका है कि उसका असली रूप क्या है, उसकी आत्मा किस चीज़ से बनती है।

सोशल मीडिया की कृत्रिम दुनिया

आज सोशल मीडिया पर जो जीवन दिखता है, वह अक्सर वास्तविकता से कोसों दूर होता है। व्यक्ति उस ‘कंफर्ट ज़ोन’ में रहने का दिखावा कर रहा है, जहाँ संघर्ष नहीं, सिर्फ सतही सुख है। यह भ्रम उसे धीरे-धीरे अंदर से तोड़ रहा है और उसकी वास्तविक जीत के मार्ग से भटका रहा है।

बेरोजगारी या कर्म के प्रति उदासीनता?

बेरोजगारी की चर्चा आम हो गई है, लेकिन मूल समस्या बेरोजगारी की नहीं, बल्कि कर्म के प्रति ईमानदारी की है। यदि युवा पूरी निष्ठा से 9 घंटे की जिम्मेदारी निभाएँ, तो वे खुद भी आगे बढ़ेंगे और दूसरों के लिए अवसर भी पैदा करेंगे। परंतु आज का युवा बहानों और दिखावे में उलझा है।

नौकरी नहीं, ज़रूरत है कार्यसंस्कृति की

आज बाज़ार में अवसरों की कमी नहीं है, परन्तु समर्पित और जिम्मेदार कर्मियों की कमी अवश्य है। जहाँ एक ओर आर्टिफिशियल टूल्स कार्य को सहज बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हें काम से भागने का माध्यम बना लिया गया है। यही कारण है कि युवा अपनी क्षमता का सही उपयोग नहीं कर पा रहे।

खुद को तपाना ही पड़ेगा

जीवन में सच्चा निखार तभी आता है जब हम स्वयं को सोने की तरह तपाते हैं। जब आप स्वयं को निखारेंगे, तो आपकी चमक इतनी होगी कि दुनिया आपको पहचानने लगेगी। लेकिन इसके लिए सबसे पहले ज़रूरी है – खुद से ईमानदार संवाद
पूछिए खुद से –
“क्या मैं सही कर रहा हूँ? क्या मेरा दृष्टिकोण सकारात्मक है? क्या मैं स्वयं को बेहतर बना रहा हूँ?”

युवा शक्ति – जागो, अभी भी समय है

आज आवश्यकता इस बात की है कि युवा दिखावे की दुनिया से बाहर निकलें और आत्मविश्लेषण करें। यह लड़ाई किसी और से नहीं, खुद से है। यह एक युद्ध है अपने अस्तित्व को पुनः पाने का, अपनी पहचान को फिर से गढ़ने का। यह संघर्ष कठिन है, परंतु नामुमकिन नहीं।


युवाओं से मेरी अपील

समय अभी भी हाथ से पूरी तरह फिसला नहीं है। अभी भी वक्त है खुद को संभालने का, खुद को निखारने का।
अपनी जीवन-नौका की पतवार खुद संभालिए।
दिखावे की इस भीड़ से बाहर आकर अपने अंदर के सच्चे इंसान को पहचानिए।
जब आप खुद को जीत लेंगे, तब ये दुनिया भी आपके सामने सिर झुकाएगी।


लेखक परिचय:

विनायक अशोक लुनिया
एक युवा चिंतक, प्रेरणादायक लेखक, पत्रकार और सामाजिक सरोकारों से जुड़े व्यक्तित्व हैं।
युवाओं की मनोवैज्ञानिक समस्याओं, रोजगार, जीवन प्रबंधन और आत्मविकास जैसे विषयों पर इनका विशेष कार्य है।


 


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