5,000 फुट ऊंची पहाड़ पर था नक्सलियों का कब्जा, 9 दिन के ऑपरेशन में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता


नई दिल्ली। छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर 5,000 फुट की ऊंचाई वाली पहाड़ी से माओवादियों को खदेड़ कर सुरक्षा बलों ने पुनः इसे अपने नियंत्रण में ले लिया है। सुरक्षा बलों ने 9 दिन के गहन नक्सल विरोधी अभियान के बाद यह सफलता हासिल की है। घने जंगल में स्थित कर्रेगुट्टा पहाड़ी हिडमा, देवा, दामोदर, आजाद और सुजाता जैसे खूंखार नक्सली नेताओं का अड्डा थी, लेकिन अब इसे पूरी तरह से सुरक्षा बलों ने अपने कब्जे में ले लिया है और इस पर तिरंगा फहराया गया है।

 

यह अभियान छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में शुरू की गई सबसे बड़ी नक्सल-रोधी कार्रवाइयों में से एक है, जिसमें जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी), बस्तर फाइटर्स, विशेष कार्य बल (एसटीएफ), राज्य पुलिस की सभी इकाइयों और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) व इसके कोबरा बल के लगभग 24,000 सुरक्षाकर्मियों ने भाग लिया।

 

सूत्रों ने बताया कि बलों ने नौ दिन के अभियान के बाद लगभग 5,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस रणनीतिक बिंदु पर नियंत्रण हासिल किया। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय अभियान पर करीबी नजर रख रहे हैं और आवश्यक निर्देश दे रहे हैं। सीआरपीएफ के महानिदेशक जी पी सिंह ने बुधवार को कर्रेगुट्टा का दौरा किया और जारी अभियान की प्रगति का जायजा लिया।

 

हेलीकॉप्टर और ड्रोन की सहायता से यह अभियान 21 अप्रैल को कर्रेगुट्टा और दुर्गमगुट्टा पहाड़ियों के दुर्गम भूभाग और घने जंगलों में शुरू किया गया था, जो बीजापुर (छत्तीसगढ़) और मुलुगु (तेलंगाना) जिलों से सटी अंतर-राज्यीय सीमा के दोनों ओर लगभग 800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

 

जिस इलाके में अभियान जारी है, वह रायपुर से 450 किलोमीटर दूर घने जंगलों से घिरी पहाड़ियों के बीच मौजूद है। इसे माओवादियों की पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) की बटालियन नंबर-1 का सुरक्षित ठिकाना माना जाता है, जो नक्सलियों की सबसे मजबूत लड़ाका इकाई है।

 

सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा बलों के लिए हेलीकॉप्टर से रसद पहुंचाई जा रही है और माना जा रहा है कि यह भारत का सबसे बड़ा नक्सल-रोधी अभियान है, जो घने जंगल और पहाड़ियों के बीच जारी है।

 

यह अभियान नक्सलियों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई का हिस्सा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश से नक्सलियों का पूरी तरह सफाया करने के लिए 31 मार्च 2026 तक की समयसीमा तय की है। छत्तीसगढ़ सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि नक्सलियों के साथ कोई शांति वार्ता नहीं की जाएगी।

 

एक अधिकारी ने कहा कि एक स्पष्ट संदेश भेजा गया है कि जो लोग आत्मसमर्पण करेंगे, उनका सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत पुनर्वास किया जाएगा, लेकिन जो लोग हिंसा का रास्ता चुनेंगे, उनके साथ सख्ती से निपटा जाएगा।

 

जानकारी मिली थी कि माओवादियों की पीएलजीए बटालियन नंबर-1, तेलंगाना राज्य समिति (टीएससी) और दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (डीकेएसजेडसी) के 500 से अधिक नक्सली हिडमा, बरसे देवा और दामोदर जैसे अपने शीर्ष नेताओं के नेतृत्व में एक बैठक के लिए एकत्र हुए थे और इलाके में छिपे हुए हैं। (भाषा)

edited by : Nrapendra Gupta 



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